स्ट्रोक में पहले तीन घंटे में हुआ इलाज चमत्‍कार कर सकता है

स्ट्रोक में पहले तीन घंटे में हुआ इलाज चमत्‍कार कर सकता है

हृदय संबंधित बीमारियों को छोड़ दिया जाए तो पूरी दुनिया में बीमारियों से होने वाली मौत के मामले में स्‍ट्रोक यानी मस्तिष्‍काघात दूसरे नंबर है। वयस्‍कों में स्‍ट्रोक विकलांगता की सबसे बड़ी वजह भी है। भारत में हर वर्ष करीब 18 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं और खतरनाक बात यह है कि इस बीमारी की चपेट में अब सिर्फ प्रौढ़ और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि 40 साल से नीचे की उम्र के युवा भी आते जा रहे हैं। युवाओं में इसके पांव पसारने की बड़ी वजह जीवनशैली है।

एम्‍स में स्‍ट्रोक के स्‍पेशलिस्‍ट प्रोफेसर कामेश्‍वर प्रसाद कहते हैं कि लकवा या स्‍ट्रोक ब्रेन की ऐसी बीमारी है जो ब्रेन में खून की नलियों में खराबी होने से होती है। ब्रेन में शरीर के अन्‍य भागों की तरह दो नलियां हैं, एक जो हृदय से ब्रेन की ओर खून लाती है और दूसरी जो ब्रेन से फि‍र हृदय की और खून लौटा कर लाती हैं। जो नलियां खून लाती हैं उन्‍हें धमनी और जो लौटा ले जाती हैं उन्‍हें वेन या शिरा कहते हैं। लकवा या स्‍ट्रोक धमनी या शिरा किसी की भी खराबी से हो सकता है।

यह खराबी मुख्‍यत: दो तरह की होती है। नली बंद होना और फटना। नली फटने को हैमरेज कहते हैं। हमारे ब्रेन को खून बनाने के लिए हृदय से चार मुख्‍य धमनियां जाती हैं। दो गर्दन में आगे से और दो पीछे से। सिर में घुसने के बाद ये अनेक पतली-पतली नलियों में बंटकर ब्रेन के एक-एक कोने को खून की आपूर्ति करती हैं। पूरे ब्रेन में इन नलियों का जाल बिछा होता है। अगर कोई नली फटती है तो खून बाहर निकलकर जमने लगता है जिसे क्‍लॉटिंग या थक्‍का जमना कहा जाता है।

ज्‍यादा खून जमने से थक्‍का बड़ा होता जाता है। धीरे-धीरे ये थक्‍का नली में उस जगह का जाम कर देता है जहां नली फटी थी मगर तबतक खून इतना निकल चुका होता है सिर के अंदर खून का प्रेशर बहुत अधिक बढ़ जाता है और त‍ब ब्रेन काम करना बंद कर देता है। यहां यह जानने की जरूरत है कि अगर ब्रेन के अंदर की नली फटती है तो हेमरेज अंदर होता है और अगर ब्रेन के बाहर नली फटती है तो बाहर हेमरेज होता है।

स्थिति दोनों ही खतरनाक है। हालांकि स्‍ट्रोक का सबसे बड़ा कारण हेमरेज नहीं बल्कि नली या हृदय में बना हुआ थक्‍का है जो नली से होते हुए ब्रेन में पहुंच जाता है और वहां छोटी नलियों में खून की सप्‍लाई रोक देता है। इसके कारण ब्रेन सुन्‍न हो जाता है और काम करना बंद कर देता है।

अब ये समझें कि अगर इस स्थि‍ति के बनने के तीन घंटे के अंदर मरीज को खून का थक्‍का गलाने की दवा पड़ गई तब तो स्थिति पूरी तरह सामान्‍य हो सकती है अन्‍यथा मरीज पूर्ण या आंशिक विकलांगता अथवा मौत का भी शिकार हो सकता है। बिना पर्याप्‍त खून के ब्रेन कुछ ही समय तक जिंदा रह सकता है।  

अगर ब्रेन का कोई भी हिस्‍सा एक बार मर गया तो फिर चाहकर भी डाक्‍टर उसे ठीक नहीं कर सकते और मरीज लकवे का शिकार हो जाता है। इसलिए इस बीमारी में समय महत्‍वपूर्ण है। तीन घंटे का समय इसलिए भी दिया जाता है कि मरीज की सीटी स्‍कैन जांच कर यह पता लगाया जा सके कि खून का थक्‍का कहां बना है और कितना बड़ा है।

सवाल है कि किसी को कैसे पता चलेगा कि मरीज स्‍ट्रोक का शिकार हो गया है? ये जानना आसान है। अगर कोई व्‍यक्ति अच्‍छा भला बैठा हो और अचानक जीवन में न हुआ हो ऐसा सिर दर्द होने लगे, या ‍फि‍र बोलने में लड़खड़ाने लगे। उसका मुंह अचानक टेढ़ा लगने लगे अथवा उसे खाने में दिक्‍कत हो जाए तो ये सब लकवे के प्रारंभिक लक्षण हैं। ऐसे मरीज को तुरंत किसी बड़े अस्‍पताल ले जाना चाहिए क्‍यों‍कि छोटे अस्‍पतालों में हो सकता है कि इलाज की सुविधा न हो।

आखिर किन लोगों को स्‍ट्रोक का खतरा ज्‍यादा होता है? लकवा किसी को भी हो सकता है मगर हाई बीपी के मरीजों, मधुमेह रोगियों, ज्‍यादा सिगरेट पीने वालों, अत्‍यधिक शराब पीने वालों, हृदय रोग वालों, मोटे लोगों और जिनके परिवार में पहले इसकी हिस्‍ट्री रही है उनके प्रभावित होने के चांसेस ज्‍यादा हैं।

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